घर -परिवार मैं कोई विकृत्ति न पनपे इसलिए वेश्यावृत्ति को राजकीय स्वीकृति दी गई थी , वेश्याएं सरकारी कर्मचारी की तरह वेतन लिया करतीं थीं . वे लोग , राजा के लिए गुप्तचरी भी किया करतीं थीं . धीरे -धीरे राजाओं के बदलते सिंहासन और मुकुट की तरह ही , नियम भी बदलते गए , शिक्षा के प्रसार के साथ ही लोगों का रहन -सहन भी बदल गया .विचारों मैं बदलाव आया और वेश्यावृत्ति को आपराधिक कृत्य घोषित कर दिया . वेश्याएं भी राजकार्य से मुक्त होकर स्वतन्त्र कार्य करने लगीं .
हमारे समाज मैं सुधार के साथ ही अपराध भी बढ़ गए , तकनीक के साथ ही अपराध के तरीके बदल गए . राजमाहराजाओं की विलासिता का परिणाम एड्स नामक लाइलाज बीमारी के रूप मैं समाज मैं फ़ैल गया . यही वह राजरोग है जिसकी गिरफ्त मैं आकर राजा जी स्वर्ग सिधार जाते थे , अंत तक रोग का पता ही नहीं लग पाता था .
समाज को इस विनाश से बचाने के लिए हाई कोर्ट ने सिफारिश की हाई कि देह व्यापार को सरकारी मान्यता दी जाय . जब हम समलैंगिक लोगों को इस समाज मैं मिला सकते हैं ,तब वेश्याओं को क्यों नहीं ? चोरी -छिपे तो ,सब कुछ चल ही रहा है फिर खुले रूप मैं स्वीकार करने मैं संकोच कैसा ? हमारे कानून मैं बलात गमन करना अपराध है , रजामंदी से गमन छ्म्य है . हजारों स्त्री पुरुषों को अकेलेपन की समस्या से जूझना पड़ता है फिर सरकारी वेश्यालयों की सुविधा का लाभ उठाया ही जायेगा . जब हम जूआघर को खुलेआम मान्य कर सकते हैं , शराबघर खोल सकते हैं तब वेश्यालय खोलने मैं क्या आपत्ति है ?
गली -गली पकड़ी जाने वाली लड़कियों को मुक्ति मिल सकती है . गरीब माता पिता शायद अपनी लाडलियों को पैसे के बदले मैं नहीं बेच पाएंगे . इस व्यवस्था से जो लोग घबराए हुए हैं ,उन्हें सोचना चाहिए कि समाज का सुधार किसी बड़े बदलाव से ही संभव है .
हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें , तो किसी भी मदिरालय , जूआघर और वेश्यालय का कोई फरक नहीं पड़ना चाहिए , वैसे भी , सब कुछ चल ही रहा है . विलासी भारतीय विदेशी धरती पर जाकर रमण करते हैं और आकर , किसी कथा के रोमांचक सार की तरह किस्सा सुनाते हैं .लाखों रुपयों की वसूली करने वाली , तरुनियाँ होटलों को अपना आश्रय बनातीं हैं और धंधा चलता ही रहता है . फिर हंगामा क्यों बरपा है ?
रेनू ...
4 comments:
वेश्यावृत्ति से बेहतर तो बहुविवाह प्रणाली है, कम से कम बहुविवाह में एक वेश्या होने की ज़लालत तो नहीं.
यही वजह है कि इतिहास पर नज़र डालें तो बहुविवाह के असंख्य प्रसंग मिल जायेंगे
kya kahein.........bahut bure halat hain.
इस तरह मान्यता देने लगे तो सामाजिक dhhanca ही बिगड़ जायेगा...
रेणु जी ,
आपका आलेख पढा और तर्क भी ,मैं खुद इस विषय पर लिख चुका हूं पढना चाहें तो
www.aajkamudda.blogspot.com
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