Monday, December 7, 2009

शत शत नमन



शहीदों की कतारें इतनी लम्बी होती जा रही हैं कि हम पुराने शहीदों को भुलाकर नए शहीदों कि यादों में ही दिए जलाते जा रहे हैं . हमारी आँखों की कोरें सूख भी नहीं पातीं हैं कि कुछ नया घाट जाता है . हम अभी तक नहीं भूले हैं , देश की सरहदों पर नव -जवानों का शहीद होना , कभी कारगिल ,कभी द्रास , कभी संसद पर जवानों का वीरता से लड़ते हुए काल के गाल में समां जाना . हजारों जवानों के सैलाव में हमारे ही रिश्ते शहीद हुए हैं . किसी का बेटा , किसी का पति  और किसी के  भाई थे . 
सीमा पर शहीद की अर्थी जब गाँव पहुंचती है , तब बच्चा -बच्चा जान जाता है कि हमारा पट्ठा अब नहीं रहा , गाँव भर में मातम छा जाता है , खेत की मेड पर , मंदिर के आँगन में उस वीर को स्थापित कर दिया जाता है . २६ / ११ के शहीद घर -घर में जीवित हो गए , लेकिन उनके अभी भावक अपने बच्चों से या प्रिय लोगों से बिछुड़ कर गहरे सदमे में जी रहे हैं . बहुत से वीर ऐसे भी हैं जिनको कोई नहीं जान पाया , सरकार भी साथ नहीं दे पाई, तो क्या , वे शहीद नहीं थे ? पर गाँव के लोगों ने उस वीर को अपने दिलों में जिन्दा रखा है . स्कूल , कॉलेज का नाम बदल कर शहीद को समर्पित कर दिया . घर के बचे लोग सीना तान कर, कह सकते हैं मेरा भाई था , वो वीर .
आज  के माता -पिता इस बात से दुखी लगते हैं कि उनके बेटे की शहादत को हर लोग क्यों नहीं जानते ? कोई , क्यों पूंछ बैठता है कि वो कौन था ? मोमबत्ती जला देने भर से श्रद्धा नहीं दिखाई जा सकती , मानवीय कल्याण के लिए प्रयास करें , तब ही शहीद को सच्चा नमन होगा . 
हमारे देश में कई वीरांगनाएँ हैं जो , अपने पति , बेटे और भाई को देश की रक्षा के हवाले कर चुकीं हैं ,उनका मस्तक एक तेज से दैदीप्यमान रहता है . वे , त्याग की मूर्ती बन , एक साध्वी ही होती हैं . वे लोग भी शहीद ही होते हैं , जो बस में , ट्रेन में , भीड़ में शहीद होते हैं .
हमारे दिलों पर तो एक छावनी सी बन गई है उन शहीदों की जो आकार यहाँ से चले गए . हम नमन करते हैं उन उन वीरों को . शत -शत नमन .
रेनू ...

1 comment:

दिगम्बर नासवा said...

बहुत संवेदनशील लिखा है ........ सच लिखा है .......... नमन है ऐसे वीरों को .........