Wednesday, November 25, 2009

भेद का भाव

हमारी रगों में भेद का भाव धरोहर सा विकसित होता रहता है . गाँव के बड़े घर में जब दादी घर के लोगों को खाना परोसती थी , तब , आधी थाली दाल- साग से भरी होती थी , दाल पूरी थाली में न फैले तो , चाचा , थाली के नीचे एक किनारे कंडे का टुकड़ा या लकड़ी का टुकड़ा लगा लेता था , चूल्हे से उतरती गरमा गरम रोटी पर दादी घी का बड़ा सा टुकड़ा दाल देती थी . दाल भी घी  से भरी रहती थी .
रात को जब , ताऊ या चाचा सोने जाते तब , लम्बे से पीतल के गिलास में मलाई से भरा हुआ दूध होता . दादी कहती थी लाली !! तेरे चाचा -ताऊ पूरे दिन काम करते हैं , क्या दादी को नहीं पता मां भी तो , पूरे दिन मेहनत करती है ? सुबह चार बजे से रात को दस बजे तक लगी रहने वाली मां , दादी को नहीं दिखाई देती . उससे कभी नहीं कहा -बहु दूध पीलो , घी लेलो . यही क्रम घर की बेटियों के साथ भी चलता था . नन्हीं बेटियां घी , दूध दही के लिए मचल जातीं थीं . जबकि ईश्वर का दिया सब होता था . कहने का आशय है कि स्त्री -पुरुष में भेद का पाप हम जो धो रहे हैं , वह हमारे पूर्वजों ने ही दिया है .
हमारी माएं , उन्होंने वही सब देखा और किया. आज कि संतानों के लिए घी दूध तो सोने के मोल मिल रहा है . खाने पीने का भेद तो भुला भी दिया जाय लेकिन जो , संम्पत्ति के बंटवारे का भेद होता है वह बहुत खतरनाक है . खाने की चीजें तो हम छीन झपट कर खा सकते हैं लेकिन धन को बेटी कैसे छीने , उसे तो ईमानदारी और हिसाब से ही लिया दिया जा सकता है . बेटियों का रिश्ता माता -पिता के लिए बस शादी तक ही नज़र आता है उसके बाद कोई जिम्मेदारी नहीं , यही कारण है कि बेटियां जलाई जा रहीं हैं और पंखे से झूल रही हैं .वे किस मां के पास जाएँ , वे किस पिता से कहें कि वे खुश नहीं हैं या इस घर में वे सुरक्षित नहीं हैं . हमारी सरकार कहती है कि -पिता की संम्पत्ति पर और पूर्वजों की संम्पत्ति पर बेटियों का बराबर हक है . अभी तक किसी बेटी को किसी पिता ने हक नहीं दिया अपनी मर्जी से .
हम कुछ लोगों को छोड़ दें जो समता का भाव रखते हैं ,फिर भी , सरकार ने कभी जानना चाहा किसी पिता ने अपनी संम्पत्ति से कितना धन बेटियों को दिया या नहीं . या किसी पिताके कितने बच्चे हैं . क्या वे पिता बेटियों को  भी अपना बच्चा समझते हैं या नहीं .
बात धन दौलत की नहीं , स्त्री -पुरुष के समान भाव की है. आज के युवा इस भेद के भाव से मुक्त नज़र आते हैं . वे सिर्फ बच्चे के भविष्य की बात सोचने लगे हैं जो अच्छी शुरुआत है . भेद का भाव हमारे समाज से मिटाना ही चाहिए . हम विकास की ऊँचाइयों को तभी छू सकते हैं .
रेनू ...

3 comments:

M VERMA said...

जब तक संस्कार को पूर्वाग्रह से मुक्त नही किया जायेगा, भेदभाव तो बना ही रहेगा.

Renu Sharma said...

yahi to vikriti hai .

Harshvardhan said...

bhedbhaav bana rahega........aapse sahmat hu.